"राष्ट्र चेतना" (कविता)

"राष्ट्र-चेतना"-(कविता)
"राष्ट्र-चेतना"-(कविता)

देश दुश्मनों के मस्तक को, आज झुकाना ही होगा। भारत रक्षा हित खायीं जो, कसम निभाना ही होगा।1 चीरा लगा बहा दें सारा, दूषित रक्त प्रवाहित हो, राष्ट्र प्रेम का हर धमनी में, रुधिर समाना ही होगा।।2 तार-तार कर डाली जिसको, चंद कुटिल नेताओं ने, भारत माँ की अनुपम छवि क्लिक »-www.prabhasakshi.com

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